परम पूज्य दादा भगवान को १९५८ में सूरत के स्टेशन पर सहज रूप से ज्ञान प्राप्त हुआ| उनके अनंत जन्मों के शोध का अंत हुआ जब अक्रम विज्ञान का यह विज्ञान उनके सामने आया| उनका आत्मा पूरी तरह से निरावरण हो गया जैसे ही सर्वज्ञ दादा भगवान उनके भीतर प्रगट हुए| इसके प